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राजनीति में कैरियर बनाना है तो विपक्ष में जाओ, फिल्म स्टार या खिलाडी बनो…

कई वषार्ें के बाद आज नमो पथ पर अचानक मुझे स्कूटी पर जाते हुए नारदजी नजर आये। मैंने जोर-जोर से ओ नारदजी-ओ नारदजी की आवाज लगाई। मेरी आवाज सुनकर नारदजी रुक गये और पलटकर मेरी ओर देखने लगे। मैं भागा-भागा नारदजी के पास पहुंचा और उन्हें प्रमाण करते हुए बोला नमस्कार नारदजी! कई सालों के बाद नजर आ रहे हो। नारदजी ने आशीर्वाद देते हुए कहा तथास्तु वत्स! जीते रहो। क्या हाल है तुम्हारा सबकुछ ठीक है। मैंने हाथ जोडकर कहा सब आपकी कृपा है। मैंने नारदजी की ओर अपने मन में उठ रहे सवालों को पूछना शुरु करते हुए कहा नारदजी चुनाव के समय आपकी एंट्री, माजरा क्या है? नारदजी मन ही मन मेरी जिज्ञासा को महसूस कर रहे थे और मंद-मंद मुस्कुराते हुए बोले वत्स कुछ युवाओं को मेरी जरुरत थी इसीलिए उनका मार्गदर्शन करने आया था। मैंने फिर एक सवाल दागते हुए कहा चुनाव के समय युवाओं का कौन सा मार्गदर्शन करने आये थे। आप कोई पॉलिटिकल पार्टी तो ज्वाइन करने नहीं आये हो? नारदजी ने ना में सर हिलाते हुए कहा नहीं वत्स नहीं, वह हमारा काम नहीं है। हमारा काम सिर्फ राह दिखाने का है, चलने काम उनका है। नारदजी की बात सुनकर मेरी उत्सुकता और बढ रही थी। मैंने फिर एक बार नारदजी की ओर सवाल का बाण छोडते हुए कहा नारदजी युवाओं को किस बात का मार्गदर्शन चाहिए था? नारदजी ने हसते-हसते जवाब देते हुए कहा वत्स युवा यह जानना चाहते थे कि उनको राजनीति में कैरियर बनाने के लिए क्या करना चाहिए? मैंने नारदजी को फिर पूछा आपने कौन सा गुर सिखाया। नारदजी बोले मैंने युवाओं को विपक्षी दल में जुडने, फिल्म स्टार या खिलाडी बनने की सलाह दी। नारदजी का जवाब सुनकर मेरा सर चकराने लगा। अरे नारदजी आप क्या युवाओं को उलट-पुलट सलाह दे रहे हो। कैरियर तो सत्ता पक्ष में बनता है। एमएलए, एमपी, मंत्री बनने का मौका मिलता है। नारदजी ने मेरी ओर तीरछी नजर करते हुए कहा वत्स! तुम जाओ तुम्हारी समझ में कुछ नहीं आयेगा क्योंकि राजनीति तुम्हारा विषय ही नहीं है। नारदजी की बातों में नाराजगी झलक रही थी। मैंने तुरंत ही शरणागति स्वीकारते हुए नारदजी से माफी मांगते हुए कहा हे अंतर्यामी, सेटेलाइटों से तेज न्यूज चैनलों के स्वामी कृपा करके मेरी अज्ञानता दूर करे और आपके गूढ रहस्य को बताये। नारदजी को शायद मेरी स्थिति पर तरस आया, नारदजी ने युवाओं को दिये मंत्र का रहस्य समझाते हुए कहा वत्स तुम्हें पता है आज के समय सत्ताधारी पार्टी में जो एमएलए या एमपी है उसमें से कितने प्रतिशत पूर्व में फिल्म स्टार, खिलाडी या विपक्ष के नेता रहे होगें। मैंने अंदाज लगाते हुए कहा लगभग 25 से 30 प्रतिशत। नारदजी बोले बिल्कुल ठीक, तुम सही हो। दरअसल, इस देश में पिछले कुछ वषार्ें में सत्ताधारी पार्टी को चुनाव जीतने के लिए विनिंग कैंडिडेट (जीताऊ उम्मीदवार) चाहिए। देश की विभिन्न विपक्षी पार्टियों में युवाओं को खुलकर राजनीति करने का मौका मिलता है। जिसके चलते कुछ ही वषार्ें में विपक्षी पार्टी के नेता जनता के बीच मजबूत नेता की छवि बना पाते है। इन नेताओं को मीडिया में भी अच्छा कवरेज मिलता है। जनता के बीच मजबूत पकड बनने के कारण विपक्षी नेताओं को सत्ताधारी दल हाथों हाथ अपने पाले में खींच लेते है। उन्हें एमएलए, एमपी का टिकट भी थमा देते है और ये नेता आसानी से चुनाव भी जीत जाते है। दूसरे है फिल्म स्टार और खिलाडी। उनकी भी जनता में अच्छी लोकप्रियता होती है। सत्ताधारी दल लोकप्रिय फिल्म स्टार और खिलाडी को अपनी पार्टी में लाकर उन्हें भी एमएलए, एमपी की टिकट दे देते है। ज्यादातर लोग जीतकर विधानसभा और लोकसभा पहुंच जाते है। नारदजी मेरी ओर मुखातिब होते हुए बोले अब तुम ही बताओ मैंने कहां गलत सलाह दी? नारदजी की बात सही में दमदार थी। क्योंकि पडोसी राज्य गुजरात हो, महाराष्ट्र हो, मध्य प्रदेश हो, हिमाचल हो, केंद्रशासित प्रदेश दादरा एवं नगर हवेली और दमण-दीव हो, केन्द्र की राजनीति हो, सत्ताधारी पार्टी लगातार विपक्ष के मजबूत नेताओं को अपने पाले में ला रही है और टिकट दे रही है। फिल्म स्टार और खिलाडियों को भी पार्टी में शामिल कर उन्हें भी टिकट देकर चुनावी समर में उतार रही है। मैंने नारदजी को नमस्कार करते हुए उन्हें विदा करते हुए कहा मुनिवर आप शत-प्रतिशत सही हो। वर्तमान में जिसका पलडा भारी हम उसके आभारी की नीति पर ही राजनीति चल रही है। नारदजी तथास्तु कहकर नमो पथ से देवका की ओर निकल गये। मैं दूर तक उनकी स्कूटी को देखता रहा और सोचता रहा कि राजनीति में विपक्षी नेता, फिल्म स्टार और खिलाडी भले इंटर में पढ रहे हो लेकिन सत्ता पक्ष में उनका दाखिला सीधा पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) में हो जाता है। विपक्ष वाले जूनियर केजी से इंटर तक राजनीतिक गुर सिखाते है और नेता तैयार करते है। सत्ता पक्ष वाले नेताओं की तैयार बैच को उठाकर उन्हें सीधा अपनी और से चुनाव मैदान में उतारकर जनप्रतिनिधि बना देते है। ऐसे सत्ता पक्ष वाले केजी से इंटर तक नेता तैयार करने की जिम्मेदारी से बच जाते है और अपना समय भी बचा लेते है।

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