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प्रशासन ने आदिवासी विकास संगठन प्रबंध समिति को किया निलंबित, प्रशासक की नियुक्ति की

असली आजादी न्यूज नेटवर्क, दमण 28 जुलाई। दादरा नगर हवेली के आदिवासियों के उत्थान एवं जनकल्याण के मूल उद्देश्य पर आदिवासी विकास संगठन और आदिवासी भवन को लाने के लिए प्रशासन ने आज आदिवासी विकास संगठन प्रबंध समिति को निलंबित करते हुए प्रशासन की ओर से प्रशासक नियुक्त कर इसका संचालन अपने हाथों में ले लिया है। पंजीकरण अधिनियम के तहत नियुक्त रजिस्ट्रार ने आज दादरा नगर हवेली के आदिवासी विकास संगठन की प्रबंध समिति को निलंबित कर दिया है। इसके साथ ही सोसायटी के मामलों और प्रबंधन को व्यवस्थित करने के लिए खानवेल मामलतदार भावेश पटेल को प्रशासक नियुक्त किया गया है। वहीं राहुल भीमरा सहायक, दादरा नगर हवेली जिले में रहने वाले आदिवासी समुदायों के कल्याण के संबंध में सोसायटी के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सोसायटी के प्रशासक की सहायता करेंगे। यह उल्लेख करना प्रासंगिक है कि सोसायटी का गठन 1988 में इस उद्देश्य से किया गया था कि आदिवासी अशिक्षित होने के कारण सामाजिक आर्थिक शोषण के प्रति संवेदनशील थे, आदिवासियों को एक बुनियादी मंच प्रदान करने और उनकी स्थितियों में सुधार करने और उन्हें बराबरी पर लाने की आवश्यकता थी। उन्हें उसी सामाजिक-आर्थिक स्थिति, पर्यावरण और व्यवहार्यता में प्रवेश दिलाएं जिसका लाभ दूसरों को मिलता है और इसलिए पूरे आदिवासी कबीले और समुदायों के लिए सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन, न्याय, सुधार और समृद्धि प्राप्त करने, सुरक्षित करने और प्रदान करने के उद्देश्य से एक समाज को संगठित करना है। हालांकि आदिवासी विकास संगठन अपने ज्ञापन में निहित उद्देश्यों को प्राप्त करने में बुरी तरह विफल रहा। जैसा कि पूर्व सांसद नटू पटेल द्वारा कई बार उठाया गया है, जो खुद एक आदिवासी नेता हैं और माननीय मुंबई उच्च न्यायालय में जनहित याचिकाएं भी दायर की हैं। सोसायटी के मामलों के कुप्रबंधन के लिए सोसायटी को कई कारण बताओ नोटिस जारी किए गए हैं जिनका सोसायटी द्वारा कभी भी संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया। कारण बताओ नोटिस के आधार सोसायटी के उद्देश्यों से विचलन जिसके लिए इसे पंजीकृत किया गया था। ऑडिट के उद्देश्य से सोसायटी रजिस्ट्रार द्वारा आवश्यक प्रासंगिक दस्तावेजों को प्रस्तुत न करना, फंड के प्रबंधन के इरादे पर गंभीर चिंता पैदा करता है। आदिवासी भवन में अनाधिकृत निर्माण, आदिवासी भवन से लगी सरकारी जमीन पर अतिक्रमण, अज्ञात स्रोतों से दान प्राप्त करना और उसकी वसूली के किसी भी प्रयास के बिना गैर-आदिवासियों को ऋण देना, आदिवासी लोगों के कल्याण के लिए सोसायटी की जमा राशि का दुरुपयोग, दानह कलेक्टर की पूर्व अनुमति के बिना आदिवासी भवन के परिसर के कुछ हिस्सों को उप-किराए पर देकर आदिवासी विकास संगठन के पंजीकरण और यूटी प्रशासन के साथ लीज डीड की शर्तों का उल्लंघन करना, लीज डीड की शर्तों का उल्लंघन, जिसके द्वारा यूटी प्रशासन ने सोसायटी को प्लॉट नंबर 351 एडीएम 0.49 हेक्टेयर पट्टे पर दिया है, जिस पर आदिवासी भवन का निर्माण किया गया है जैसे कारण शामिल है। यूटी प्रशासन सोसायटी के उद्देश्यों को प्राप्त करने का इरादा रखता है और इसलिए सोसायटी के मामलों को कुछ स्थानीय लोगों के हाथों से लेने के लिए आवश्यक निर्णय लिया गया है, जिन्होंने सोसायटी के कल्याण को ध्यान में रखे बिना सोसायटी के मामलों को कुप्रबंधित किया था। यूटी प्रशासन ने सरकारी जमीन को 40 रुपये प्रति वर्ष की मामूली राशि पर पट्टे पर आवंटित किया था। सोसायटी को उस उद्देश्य को प्राप्त करने की दृष्टि से, जिसका सोसायटी ने अवैध रूप से वाणिज्यिक संस्थाओं को संरचनाओं को उप-किराए पर देकर अपने पक्ष में दुरुपयोग किया। जनजातीय कल्याण के उद्देश्यों को प्राप्त करने के इरादे से आगे बढ़ते हुए, प्रशासन ने समाज के मामलों को व्यवस्थित करने के लिए प्रशासक की नियुक्ति की है। आने वाले दिनों में प्रबंध समिति के गठन, उपविधि, लेखा प्रबंधन आदि पर गौर किया जाएगा। आने वाले दिनों में आदिवासी युवाओं, महिला आदिवासियों, जिले के अग्रणी आदिवासियों को सोसायटी के मामलों का नेतृत्व करने और समाज में रहने वाली आदिवासी आबादी के कल्याण में योगदान देने के लिए सोसायटी के उद्देश्यों का अक्षरश: पालन करने के लिए प्राथमिकता दी जाएगी। इसके अलावा दादरा और नगर हवेली जिले के आदिवासी समुदायों के कल्याण के संबंध में सोसायटी के उद्देश्यों की पूर्ति न होने और मामलों के कुप्रबंधन को ध्यान में रखते हुए, प्रबंध समिति के पदाधिकारियों को कारण बताने का निर्देश दिया जाता है। सोसायटी पंजीकरण अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई क्यों नहीं की जानी चाहिए और सोसायटी के मामलों के विघटन/समायोजन के लिए मामले को सिलवासा के मूल नागरिक क्षेत्राधिकार के प्रधान न्यायालय में क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए। सोसायटी का उत्तर इस नोटिस की प्राप्ति की तारीख से 60 दिनों की अवधि के भीतर प्रशासक के माध्यम से अधोहस्ताक्षरी के कार्यालय तक पहुंच जाना चाहिए। गौरतलब है कि पिछले तीन दशक से आदिवासी भवन का राजनीतिक प्लेटफॉर्म की तरह उपयोग किया जाता था। एक ही परिवार के आधिपत्य वाले आदिवासी संगठन और भवन को आदिवासी समाज के उत्थान एवं जनकल्याण के मूल उद्देश्य की ओर ले जाने के लिए प्रशासन ने आज यह निर्णय लिया है। कहा जाता है कि अब दादरा नगर हवेली के जागरुक आदिवासी युवा आदिवासी विकास संगठन और आदिवासी भवन के माध्यम से आदिवासी समाज के लिए रचनात्मक कार्यों को पूरा करने में योगदान दे सकेगंे।

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